आदमी और औरत का रिश्ता परमात्मा और एक दूसरे के साथ अद्भुत था।

लेकिन क्या आप को याद है वह स्वर्गदूत जिसे परमात्मा ने बनाया था? उनमे से एक स्वर्गदूत बहुत घमंडी हो गया। वह परमात्मा की तरह होना चाहता था और दूसरे स्वर्गदूतों से परमात्मा की जगह अपनी आराधना कराना चाहता था।

लेकिन एक ही परमात्मा है जिसकी आराधना करनी चाहिए। इसीलिए परमात्मा ने उस अवज्ञाकारी स्वर्गदूत को स्वर्ग से निकाल दिया। और हम उस स्वर्गदूत को शैतान कहते हैं।

परमात्मा ने उन सभी स्वर्गदूतों को भी स्वर्ग से निकाल दिया जो उसके पीछे चलते थे। वे बुरी और दुष्ट आत्माएँ थी।

एक दिन शैतान ने औरत को उस पेड़ के फल खाने को भरमाया जो मना किया गया था।

उन्होंने उसे पूछा “क्या परमात्मा ने सच में कहा कि आप बग़ीचा के किसे भी पेड़ से नहीं खा सकते हैं?”

औरत ने कहा, “नहीं, हम किसी भी पेड़ से खा सकते हैं, सिर्फ उसको छोड़ कर जो बग़ीचा के बीच में है। अगर हम उसे खाएँ या उसे छुएँ तो हम मरेंगे।”

लेकिन शैतान ने उसे बताया “आप नहीं मरेंगे, बल्कि आप परमात्मा की तरह बनेंगे!”

औरत ने शैतान की बात सुनी और फल को खा लिया। और उसने पत्ती को भी दिया, उसने भी खाया।

उस दिन उन दोनों ने पाप किया। पाप वही है जब भी हम परमात्मा के आज्ञाओं का उलंघन करते हैं।

परमात्मा धार्मिक और पवित्र है। उनको हमें दण्ड देना होता है जब हम उनके आज्ञाओं का उलंघन करते हैं।

परमात्मा ने आदमी और औरत को बग़ीचे से निकाल दिया और उनका परमात्मा के साथ रिश्ता हमेशा के लिए टूट चूका था।

उस आदमी और औरत की तरह हम सब ने पाप किया। हमारा परमात्मा के साथ रिश्ता टुटा हुआ है और पाप का परिणाम नरक में अनंत दण्ड है।

हम हमेशा के लिए परमात्मा के साथ नहीं जी सकते जैसे हम बनाये गये थे। क्या किया जा सकता है?