समय बितते बितते पृथ्वी पर लोगों की संख्य बढ़ गयी।

हालाँकि उन सभी ने पाप किया, परमात्मा तभी उनसे बेहद प्रेम करता था और उनके साथ रिश्ता बनाना चाहता था।

परमात्मा ने अपने एक सेवक के द्वारा लोगों को दस आज्ञाएँ दी।

याद कीजिये कि परमात्मा सिद्ध और पवित्र हैं तो हमें भी सिद्ध और पवित्र बनना हैं उनके साथ रहने के लिए।

दस आज्ञाएँ ने लोगों को सिखाया कि वे परमात्मा और एक दूसरे के साथ सही तरीके से कैसे रहें।

उनमे से कुछ आज्ञाएँ थी –

अन्य देवताओं की पूजा ना करें

ना मूर्तियों को बनाएँ;

अपनी माता-पीता का आदर करना;

झूठ ना बोलें,

चोरी ना करें,

हत्या ना करें,

दूसरों के चीज़ों का लालच ना रखें,

व्यभिचार ना करें।

लेकिन कोई भी इन सारे आज्ञाओं का पालन नहीं कर पाया।

हर बार जब वे पाप करते थे, परमात्मा ने उनको अपने पापों को स्वीकार करने दिया और एक बलिदान चढ़ाने दिया जो उनकी दण्ड की जगह को ले लिया।

यह बलिदान एक सिद्ध जानवर के खून बहने से ही पूरा होता था।

जब वे इस बलिदान को चढ़ाते थे परमात्मा से विनती करते थे कि वे उन्हें क्षमा करें और वह जानवर उनकी जगह मर जाने दें।

सिर्फ खून के गिराने से किसी व्यक्ति का पाप क्षमा हो सकता है।

लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया वे ह्रदय से अपने पापों के लिए दुःखी नहीं थे।

लेकिन उनके बलिदान खाली रिवाज हो गये।

परमात्मा ने कहा, “बस बहुत खाली बलिदान हो चुके!”

जानवरों को बलिदान करने के नियम से लोगों को एहसास हुआ कि वे अपने आप से परमात्मा के पास नहीं लौट सकते हैं।

क्या किया जा सकता है?