भक्ति यात्रा

एक अध्यात्मिक यात्रा है जिसे हम सब पर जाना है. परमात्मा हमें खोजते हैं और हमारी जिम्मेदारी परमात्मा को खोजना और पाना है. सद्गुरु यीशु कहते हैं की, “देखो, मैं दरवाज़े पर खड़ा खटखटा रहा हूँ। यदि कोई व्यक्ति मेरी आवाज़ सुनकर द्वार खोलेगा तो मैं उसके घर में आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।” क्या हम उनकी आवाज को सुन पा रहे है? क्या हम अपने दिल के द्वार को खोलने के लिए तैयार हैं?

यीशु परमात्मा है. यीशु गुरु है. और वही सद्गुरु है. हमें सब गुरु की ज़रूरत है जो हमें सही मार्ग दिखा सकें. यीशु जी ने कहा की, “मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ.” यानी गुरु यीशु केवल मार्ग दिखाने वाले ही नहीं हैं बल्कि वह स्वयं मार्ग है. और वही परम सत्य हैं.

लेकिन सद्गुरु यीशु के विषय में केवल जानना पर्याप्त नहीं है. ज्ञान से उत्तम अनुभव है. और हमें प्रभु यीशु का अनुभव करना होगा. हमें गुरु के शिक्षा को पाना होगा. और उस शिक्षा को अपने जीवन में लाना होगा. हमें गुरु का अनुसरण करना होगा. तभी हमारी जीवन परिवर्तित हो जाएगी और हम यीशु भक्त कहलाएँगे.

इस पवित्र और मत्वपूर्ण यात्रा पर आज ही शुरू हो जाइये. निच्चे दिए हुए दिशाओं को पढ़े और धीरे धीरे सिख जाइये कि सद्गुरु यीशु का शिष्य बनाने का अर्थ क्या है.