अपना जीवन यीशु जी को समर्पित करें

इसका क्या मतलब है कि हम सद्गुरु यीशु को अपना जीवन दे दें? या कि हम उनके पिच्छे चलें? या कि हम उनके भक्त या शिष्य बनें?

इस सवाल को लेके बहुत विचार विमर्श हुआ. और बहुत से लोग इसका गलत उदाहरण बने है. लोगों ने यह बताया कि इसका मतलब यह है कि आप को इसाई यानी क्रिस्चियन समुदाय का सदस्य बनना हैं. या आप को अपनी समाज बदलना है, या परिवार को छोड़ना है या अपना नाम को बदलना है. अगर इन उत्तरों को सच में देखा जाएँ तो इनमें इसका असली अर्थ खो गया.

आये हम यीशु ग्रन्थ को देखें कि इसके विषय में क्या लिखा है. यीशु जी ने कभी बाहरी चीजों को बदलने के लिए नहीं कहा. उन्होंने धर्म परिवर्तन के विषय में नहीं कहा परन्तु ह्रदय परिवर्तन की बात की.

तो यह हमारे दिल कैसे बदल सकता है?

सब के दिल में पाप और अधर्म है. गलतियाँ करते हैं. हम पूरी तरह से सिद्ध नहीं है. मन में शान्ति नहीं है.

वचन में लिखा है कि “सबने पाप किया है और परमात्मा की महिमा से दूर हो गए हैं।” 

तो हम क्या करें? इस पाप से कैसे बच सकते हैं? वचन आगे बताता है –

“परंतु परमात्मा की अति कृपा ने हमें दोष-मुक्त किया है। यह उसने मुक्तिदाता येशु द्वारा किया, जिन्होंने हमारे पापों को लेकर हमें निर्दोष ठहराया है, जिन्हें परमात्मा ने प्रभु येशु के रक्त और मृत्यु द्वारा, लोगों के पाप से छुटकारे का साधन बनाया।”

प्रभु यीशु ने हमारे पाप/अधर्म और गलतियों को अपने ऊपर ले लिया. वह क्रूस पर हमारे लिए मारे गए थे. लेकिन वह फिरसे जीवित हो गए.

हम ने बताया कि हम कैसे अंधकार में रहते हैं. और हम सब को गुरु का प्रकाश की ज़रूरत है.

हम सब मुक्ति और मोक्ष को खोजते हैं. लेकिन मोक्ष कहाँ पाया जाता है? सदियों से भारत के ऋषियों का प्रर्थ यही रहा कि, “असतो मा सद् गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतम्गमय “ यानी  मुझे असत्य से सत्य की  ओर ले चलो, मुझे अनधिकार से ज्योति की ओर ले चलो, मुझे मृत्यु से अमृत जीवन की ओर ले चलो.

सद्गुरु यीशु ने कहा कि, “मार्ग सत्य और जीवन मैं हूँ.” और उन्होंने कहा कि “जगत की ज्योति मैं ही हूँ.” पर किसी भी गुरु से हम मोक्ष पा सकते हैं और हमारे पाप उनके द्वारा क्षमा हो सकते हैं न? नहीं! हमें केवल सनातन सतगुरु यीशु के द्वारा क्षमा और मोक्ष मिलता है! वचन में लिखा है – “किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा मुक्ति नहीं, क्योंकि आकाश के नीचे मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया जिसके द्वारा मुक्ति मिल सके।” 

एक ही नाम में मोक्ष और क्षमा है और वह नाम यीशु नाम है. सिर्फ और सिर्फ सद्गुरु यीशु में क्षमा मोक्ष और मुक्ति पाए जाते हैं.

लेकिन हम उनको गुरु और भगवान के रूप में कैसे स्वीकार करते हैं?

वचन में लिखा है कि, “यदि तुम अपने मुँह से स्वीकार करते हो कि येशु ही प्रभु है और अपने मन में यह आस्था रखते हो कि परमात्मा ने उन्हें मृतकों में से जीवित किया, तो तुम्हें मुक्ति मिलेगी। क्योंकि मन की आस्था से तुम निर्दोष जीवन प्राप्त करते हो, और अपने मुँह द्वारा स्वीकार करने से तुम्हें मुक्ति मिलती है।”

तो बस अपने मुंह से बोलना है और मन में विशवास करना और आस्था रखना है!

अगर आप यीशु के पीछे चलने के लिए तैयार है तो निचे दिया हुआ प्रार्थना को करें. अगर आप तैयार नहीं है तो फिर भी हम उत्साहित करते हैं कि आप आगे बढ़ें और 21 दिन की चुनौती को ले लें. हमें विश्वास है यीशु आप के जीवन में कुछ करेंगे. और याद करें कि इस प्रार्थना को करने से आप इसाई नहीं बनते है यह अपना समाज को नहीं बदलते है. आप हिन्दू है तो हिन्दू रहते हुए आप सद्गुरु यीशु के शिष्य बन सकते हैं. यानी आप एक हिन्दू यीशु भक्त बन सकते हैं. हिन्दू यीशु भक्त आन्दोलन के बारे में और जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें.