सद्गुरु यीशु को जाने
यीशु ग्रन्थ की कथा जो जाने और सद्गुरु यीशु का जीवन के विषय में जाने.
यीशु भक्ति के इक्कीस दिन
यीशु भक्ति के इक्कीस दिन को कैसे करें?
यीशु भक्त होने का अनुभव करने के लिए प्रभु यीशु के बारे में जानना अतिआवश्यक है। हर दिन निम्नलिखित वचनों में से एक को पढ़ें और इन सवालों का जवाब एक कॉपी में लिखें।
1) यह प्रभु यीशु या भगवान के बारे में क्या कहता है?
2) यह मेरे विषय में यानी मनुष्यता के विषय में क्या कहता है?
ये सारे वचन जो निचे लिखे है, “सनातन गुरु यीशु का अमृत सन्देश” में इन पृष्ट संख्यों में पाये जा सकते है । कुछ समय बिताएँ उन सवालों के जवाबों के बारे में सोचने में। फिर जो कुछ आप ने सिखा है उस पर मनन करें। फिर निम्नलिखित प्रार्थना को कीजिये और अगर आप की कोई व्यक्तिगत जरूरत या इच्छा है तो यीशुजी से उसके लिए भी माँगे।
भगवान आप सर्वशक्तिमान है। आप ही ने सब कुछ बनाया। मैं स्वीकार करता हूँ कि मेरे जीवन में मैंने बहुत पाप किया। मेरे पाप के वजह से मुझे आप की क्षमा की ज़रूरत है। मुक्तिदाता यीशु को भेजने के लिए कि वह कष्ट उठाएँ अपने जीवन को अर्पित कर दिये कि मेरे पाप को हरा दे, धन्यवाद। उनको फिर से जीवित करने के लिए धन्यवाद कि कह दूसरों को जीवन दे सकें। प्रभु यीशु पर भरोसा करने के लिए ओर उनके पीछे चलने में मेरी मदद कीजिये। सच्ची भक्ति का अभ्यास में मेरी मदद कीजिये। मैं आप को प्रार्थना करता हूँ प्रभु यीशु के ताकत से। तथास्तु।।
असतो मा सद् गमय मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो
तमसो मा ज्योतिर्गमय मुझे अनधिकार से ज्योति की ओर ले चलो
मृत्योर्मा अमृतम्गमय मुझे मृत्यु से अमृत जीवन की ओर ले चलो
योहन 1:1-18 पृष्ट 1 योहन 8:1-12 पृष्ट 40 योहन 15:1-17 पृष्ट 69
योहन 2:12-25 पृष्ट 11 योहन 9:1-41 पृष्ट 46 योहन 16:5-33 पृष्ट 71
योहन 3:1-21 पृष्ट 14 योहन 10:1-21 पृष्ट 50 योहन 17:1-19 पृष्ट 74
योहन 4:4-42 पृष्ट 18 योहन 11:1-43 पृष्ट 53 योहन 18:1-40 पृष्ट 76
योहन 5:1-18 पृष्ट 24 योहन 12:1-11 पृष्ट 58 योहन 19:1-42 पृष्ट 80
योहन 6:1-15 पृष्ट 29 योहन 13:1-17 पृष्ट 63 योहन 20:1-31 पृष्ट 84
योहन 7:37-53 पृष्ट 37 योहन 14:1-14 पृष्ट 66 योहन 21:1-25 पृष्ट 87